चान्दनी बरसती है, निर्मम
कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि पेड़ों के नीचे
कितने नष्ट हुए
नदी बहती जाती है
खामोशी हमेशा होगी
इससे बेखबर कि वहां उस घर के पार्श्व में
कोई कितनी देर से रोता है
नंगी बाहों में अपने छाले भींचे
हर कुछ नष्ट हो जाता है
पीड़ा भी, दुख भी
हंस तिरते रहते हैं
सरकण्डे अपने सिर पर पँखों का भार लिए
कंकड़ और छोटे, और चिकने होते जाते हैं
रात की खुरदरी धारा के नीचे
चलते हैं हम दूरियाँ तय करते
छकड़ों में हमारे, झोले, असबाब
बोझ उपहारों का
हम जानते हैं ज़मीन
समन्दर के नीचे ग़ुम होती जाती है
द्वीप निगल लिए जाते हैं
प्रागैतिहासिक मछलियों से
हम जानते हैं, अभिशप्त हैं हम
बर्बाद, ख़ात्मे पर
फिर भी रोशनी हम तक आती है
हमारे कन्धों पर अब भी गिरती है
यहाँ भी, चान्द जहाँ ओझल है
तारे कितनी दूर...
अँग्रेज़ी से अनुवाद : रंजना मिश्र
—
लीजिए, अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए
Dorianne Laux
Evening
Moonlight pours down
without mercy, no matter
how many have perished
beneath the trees.
The river rolls on.
There will always be
silence, no matter
how long someone
has wept against
the side of a house,
bare forearms pressed
to the shingles.
Everything ends.
Even pain, even sorrow.
The swans drift on.
Reeds bear the weight
of their feathery heads.
Pebbles grow smaller,
smoother beneath night’s
rough currents. We walk
long distances, carting
our bags, our packages.
Burdens or gifts.
We know the land
is disappearing beneath
the sea, islands swallowed
like prehistoric fish.
We know we are doomed,
done for, damned, and still
the light reaches us, falls
on our shoulders even now,
even here where the moon is
hidden from us, even though
the stars are so far away.