उतरी विभा स्वर्ग की नीलाम्बर से भूमण्डल पर,
अंगराग लग गया चाँदनी का रजनी के तन पर।
किसने तिमिरराम्बर वितान पर,
लिखे अनादि ज्योति के अक्षर?
खिले गगन के नाभिकमल में
सत्य और शिव सुन्दर।
खुला दिव्य लावण्य सरोवर,
हिमशीतल चन्दन रस से भर,
प्रकट हुआ चैतन्य प्राण का-
चिद्विलासमय भास्वर।
विश्वभुवन आनन्दमनोमय,
तजोमय सौन्दर्य अमृतमय,
दुग्धफेन के अनुलेपन से
धवलित गिरिवन प्रान्तर।
निर्मल मणिदर्पण में नूतन,
धरा देखती मृण्मय आनन,
माँग बनाती प्रभा निशा के
केशपाश पर मनहर।