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शिकस्त / फ़राज़


शिकस्त<ref>पराजय</ref>

बारहा<ref>कई बार</ref>मुझसे कहा दिल ने कि ऐ शोब्दागर<ref>धोबी</ref>
तू कि अल्फ़ाज़<ref>शब्दों</ref>से अस्नामगरी<ref>मूर्तिकारी</ref>करता है
कभी उस हुस्ने-दिलआरा<ref>प्रेमपात्र के सौंदर्य</ref>की भी तस्वीर बना
जो तेरी सोच के ख़ाक़ों में लहू भरता है

बारहा दिल ने ये आवाज़ सुनी और चाहा
मान लूँ मुझसे जो विज्दान<ref>काव्य रसज्ञता</ref>मेरा कहता है
लेकिन इस इज्ज़<ref>दुर्बलता</ref>से हारा मेरे फ़न<ref>कला</ref>का जादू
चाँद को चाँद से बढ़कर कोई क्या कहता है

शब्दार्थ
<references/>