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शिक्षक / विजय गुप्त

मार डालते हैं
शेर को
लकड़बग्घे भी मिलकर,
बच जाए तो
तबाह कर देती हैं
गंदी मक्खियाँ
शेर को ।
पूरे स्कूलों पर
कब्ज़ा है
लकड़बग्घों और
मक्खियों का ।

नौकरशाही की
मामूली दहाड़ भी
ले लेती है जान
ग़रीब और निरीह शिक्षक की
अदने से सरपंच, बाबू और
हवलदार की भिनभिनाहट से भी
गिर जाता है
आँसू की तरह
अपनी ही आँख से शिक्षक ।

गा रहे हैं
बच्चे
डरे हुए शिक्षक के साथ
सुबह की प्रार्थना ।