Last modified on 23 अगस्त 2009, at 02:44

शिमला एक गहरा कूँआ / सुदर्शन वशिष्ठ

शिमला एक गहरा कूँआँ है
जिसका पिया नहीं जाता पानी
जिस में गिराये गये हैं
न जाने कितने ज़हरीले साँप।

शिमला एक गहरा कूआँ है
जहाँ बड़ी मुश्किल से
मुँडेर पर धूप सेंकने बैठते हैं मैंढक
ऊपर आने से पहले वे
तैर कर पार करते हैं कूँएँ का सफर ।
फिर झाँकते हैं बाहर
गाल फुलाते हुए
कोलम्बस की तरह
बतियाते हैं टर्र टर्र
अहो ! सात समन्दर लाँघ आए हैं हम
नहीं है हम से बड़ा कोई तारू
इस समुद्र में।
दरअसल गोलाई में भागते हुए
हाँफते हुए पहुँचते हैं वहीं
चले थे जहाँ से
माल रोड़ पर जहाँ से चलता है प्रतिभागी
बतियाता और रेंगता हुआ
पहुँचता है फिर-फिर वहीं।