छिप गये शिमला के
बड़ा गाँव, बिहार ग़ाँव के देवता
नालदेहरा गोल्ड ग्राऊँड में
हुआ खाली देवता घर
नन्हें गेंद की मार से
नहीं रहते शहरों में
जंगलवासी देवता ।
हाँ, कभी कभी आता है शिमला में
कोई पहाड़ी देवता
ढूँढने अपना पुराना थान
रथ पर सवार घूमता कभी आगे कभी पीछे
साथ में लम्बी जटाओं वाला परेशान गूर
पुजारी, हाथ में लिए धूप का धड़छ
जिसके अंगारे गिरते नंगे पैरों पर
आगे आगे चलते बजंतरी
बजाते धुन
धुम्म..........टणण टणण धुम्म....टणण टणण....।
रुकता जगह जगह
पुराने लोग करते वंदना
लेते आशीर्वाद घूमता दुकान दुकान लोअर बाज़ार।
माल रोड़ नहीं देवता
जनता है वह
माल रोड़ की मर्यादा
देवता और मज़दूर वर्जित हैं यहाँ
वर्जिर हैं आदमी जो चले नंगे पाँव।
विशुद्ध भारतीय है, देशभक्त है वह
भूला नहीं प्रताड़ना,अवमानना और अपमान
नहीं देख सकता
बुत हुए लाजपतराय या गान्धी महान।
धीरे-धीरे दूर होती
मधुर वादियों की धुन
प्रतिध्वनि की तरह
धुम्म..............टणण टणण धुम्म....टणण टणण....।
कभी कभार देवता के आने से
लगता है
शिमला एक पहाड़ी शहर।