तुम्हारा नाम अपने साथ जोड़ लिया है
शिरस्त्राण की तरह
ओढ़ लिया है
पर हर पल
हर क्षण
त्रस्त रहती हूँ
छिपे शत्रु के तीरों से
मेरे संवेगों के
संहारक अस्त्र
आयेंगे
उड़ा देंगे मेरा
शिरस्त्राण
मेरा कवच भेदते हुण्े
छिन्न-भिन्न कर डालेंगे
मेरा मस्तक
जाने क्यों हर समय डरी रहती हूँ?