♦ रचनाकार: अज्ञात
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शिव शंकर चले कैलाश,
बुंदियां पड़न लगीं
कौना ने बो दई हरी-हरी मेहंदी
कौना ने बो दई भांग, बुंदियां पड़न लगी।।
गौरा ने बो दई हरी-हरी मेहंदी
भोला शंकर ने बो दई भांग। बुंदियां...
कौना ने बांटी हरी-हरी मेहंदी,
कौना ने बांटी भांग। बुंदियां...
गौरा ने बांटी हरी-हरी मेहंदी,
शंकर ने बांटी भांग। बुंदियां...
कौना रचाई हरी-हरी मेहंदी,
कौना ने पी लई भांग। बुंदियां...
गौरा के रच गई हरी-हरी मेहंदी,
शिवशंकर ने पी लई भांग। बुंदियां...
भोला शंकर को चढ़ गई भांग, बुंदियां...