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शिशिर गोड़ेॅ पड़ौं / ऋतुरंग / अमरेन्द्र

शिशिर गोड़ेॅ पड़ौं।
ऐला बिन पिया, जा-विनती करौं
शिशिर गोड़ेॅ पड़ौं।

अंगुल भर दिन, रात हाथ-हाथ लामी
एकरा पर योजन भर दूर बसै स्वामी
छुच्छे बिछौना पर रही-रही डरौं
शिशिर गोड़ेॅ पड़ौं।

पंछी के बोली रङ हँस्सी नुकैलै
शिशिरोॅ में मछली रङ सब सूख बिलैलै
मिललोॅ छै वनवासे हमरा घर्हौं
शिशिर गोड़ेॅ पड़ौं।

कनकन्नोॅ पानी रङ सूनोॅ बिछौना
जंगल में खुश होतै हाथी-मृग मौना
सुमरी ई बातोॅ केॅ लाजें मरौं
शिशिर गोड़ेॅ पड़ौं।

फूल रखी खोपा पर सरसों हरियेलै
उपटीकेॅ गाछी पर कुन्द फूल ऐलै
कथीलेॅ जीत्तोॅ छी, जीत्ते मरौं
शिशिर गोड़ेॅ पड़ौं।

-4.1.97