Last modified on 30 मार्च 2021, at 23:39

शिशिर फिसिर गिरी / मुकेश कुमार यादव

शिशिर फिसिर गिरी, घुरी फिरी घिरी-घिरी।
मन में आनंद भरी, दिल के रिझाय छै॥

सोलहो शृंगार करी, देहरी औ द्वार फिरी।
चारों ओर फिरी-फिरी, सपना सजाय छै॥

कानन कुण्डल धरी, झूलना झूलन घरी।
आँखी में सुन्दर भरी, कजरा लगाय छै॥

मन में जे प्रीत भरी, रीत भरी डरी-डरी।
घुमत फिरत घरी, बड़ी घबराय छै॥

भुवन सुमन भरी, मधुवन रस भरी।
मन अकुलाय घरी, सजना बुलाय छै॥