मेरा हृदय एक शिशु-सा
रूई के फाहे से भी नर्म
प्रपातों के बहते जल-सा
निर्मल, धवल, उज्ज्वल, फेनिल
मेरा हृदय खाली कागज़-सा
शब्द रहित
जिस पर नही है अंकित कुछ भी
स्याह, घृणा, विद्वेश, दूरियाँ
मेरा हृदय हरसिंगार के एक छोटे-से पुश्प-सा
अपनी संुगन्ध, सौन्दर्य व पवित्रता से पूर्ण
इसे रहने दो/बस ! यूँ ही
यह विचलित होता है
जति, धर्म, सम्प्रदाय के ईंट-गारे से निर्मित
राजनैतिक दीवारों में कैद
बालिकायें, शिशु, वृद्ध जब भी आते हैं
इनकी सीमाओं में
यह सिसकता है
अनुभूति मात्र यही पंखुड़ियों पर पड़ी
ओस की बूँद
अनायास लुढ़क गयी गर्म रेत में ।