फिर फिर जेठ तपेगा
आँगन, हरियल पेड लगाये रखना,
विश्वासों के हरसिंगार
की शीतल छाँव बचाये रखना।
हर यात्रा खो गयी तपन में,
सड़कें छायाहीन हो गयीं,
बस्ती-बस्ती लू से झुलसी,
गलियां सब गमगीन हो गयीं।
थका बटोही लौट न जाये,
सुधि की जुही खिलाये रखना।
मुरझाई रिश्तों की टहनी
यूँ संशय की उमस बढ़ी है,
भूल गये पंछी उड़ना भी
यूँ राहों में तपन बढ़ी है।
घन का मौसम बीत न जाये,
वन्दनवार सजाये रखना।
गुलमोहर की छाया में भी
गर्म हवा की छुरियाँ चलतीं,
तुलसीचौरा की मनुहारें
अब कोई अरदास न सुनतीं।
प्यासे सपने लौट न जायें,
दृग का दीप जलाये रखना।