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शुक्र को तारो रे ईश्वर उंगी रह्यो / निमाड़ी

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

शुक्र को तारो रे ईश्वर उंगी रह्यो।
तेकी मखऽ टीकी घड़ाव।।
धु्रव की बादळई रे ईश्वर तुली रही।
तेकी मखऽ तहबोळ रंगाव।।
सरग की बिजळई रे ईश्वर कड़की रही।
तेकी मखऽ मगजी लगाव।।
नव लख तारा रे ईश्वर चमकी रह्या।
तेकी मखऽ अंगिया सिलाव।।
चाँद-सूरज रे ईश्वर उग्री रह्या।
तेकी मखऽ टीकी लगाव।।
वासुकी नाग रे ईश्वर देखई रह्यो।
तेकी मखऽ एणी गुथाव।।
बड़ी हठ वाळई रे, गौरल-गोरड़ी।।