मैंने तुम्हें भरपूर चाहा
नहीं जानती मैं
शायद यही प्यार हो।
पर
पुरुष हो ना तुम
कहाँ रास आयेगा तुम्हें/मेरा निश्छल समर्पण
भटकना है तुम्हें तो
शाश्वत मृगतृष्णा
फिर नये सिरे से
क ख ग / सिखाओगे।
किसे?
मैंने तुम्हें भरपूर चाहा
नहीं जानती मैं
शायद यही प्यार हो।
पर
पुरुष हो ना तुम
कहाँ रास आयेगा तुम्हें/मेरा निश्छल समर्पण
भटकना है तुम्हें तो
शाश्वत मृगतृष्णा
फिर नये सिरे से
क ख ग / सिखाओगे।
किसे?