शेख बिरहमन दोनों हैं
मेरे दुश्मन दोनों हैं
ज्यादा धन और ज्यादा मोह
दुःख के कारण दोनों हैं
घर आँगन से बँटे हुए
अपने तन मन दोनों हैं
इस बूढ़े मन के अन्दर
बचपन, यौवन दोनों हैं
उसकी लीला है प्यारे
राम और रावण दोनों हैं
जीवन की इस बगिया में
पतझर - सावन दोनों हैं
बजना इनका वाज़िब है
खाली बरतन दोनों हैं
उसके मेरे बीच में अब
चाहत अनबन दोनों हैं
अब किस पर विश्वास करूं
रहबर रहजन दोनों हैं