(1)
फिर हम कहाँ, कहाँ तुम, जी भर के देखने दो,
अल्लाह, कितनी मुद्दत तुमसे जुदा रहे हैं।
(2)
बसा फूलों की नकहत1 में लिये मस्ती शराबों की,
महकता, लहलहाता एक काफिर2 का शबाब3 आया।
(3)
बहाना मिल न जाए बिजलियाँ को टूट पड़ने का,
कलेजा कांपता है आशियाँ को आशियाँ कहते ।
(4)
बू-ए-वफा न फूटे कहीं उनको यह खौफ है,
फूलों से ढक रहे हैं, हमारे मजार को।
(5)
मस्त आंखों पर घनी पलकों की छाया यूँ थी,
जैसे कि हो मैखाने4 पर घरघोर घटा छाई हुई।
1.नकहत - खुशबू, सुगन्ध, महक 2. काफिर - बहुत सुन्दर स्त्री जो वफ़ा न निभाए 3.शबाब - जवानी, युवावस्था, तारूर्ण्य 4.मैखाना - शराबखाना