Last modified on 22 मार्च 2012, at 08:05

शेर-17 / असर लखनवी

(1)
हायरे तेरी जुस्तजू1 का फरेब2, हर कदम पै गुमाने-मंजिल3 था,
उसकी बेदाद4 का नहीं शिकवा, मेरा ही शौक मेरा कातिल था।

(2)
वह काम कर बुलन्द हो जिससे मजाके-जीस्त5,
दिन जिन्दगी के गिनते नही माहो-साल में।

(3)
हम कैद से रिहा जो हुए भी तो क्या हुआ,
जब गोशा6-ए-चमन में नसीब आशियाँ न हो।

(4)
हम समझते थे कि उल्फत7 खेल है,
क्या खबर थी यह लहू रूलवायेगी।

(5)
खिजां के लूट से बर्बादिए-चमन तो हुई,
यकीन आमादे -फस्ले-बहार8 कम न हुआ।

1.जुस्तजू - तलाश, खोज 2.फरेब - (i) छल, कपट, धोखा (ii) बहाना 3.गुमाने - शंका, शुबह, शक 4.बेदाद - जुल्म, अत्याचार5.मजाके-जीस्त - जीवन की रसिकता 6.गोशा - कोना 7.उल्फत - प्यार, मुहब्बत 8.आमादे-फस्ले-बहार - वसन्त ऋतु का आगमन