(1)
घुट-घुट के मर न जाए तो बतलाओ क्या करे,
वह बदनसीब जिसका कोई आसरा न हो।

(2)
चाल वह दिलकश जैसे आये,
ठंडी हवा में नींद का झौंका।
 
(3)
छोड़ दीजे मुझको मेरे हाल पर,
जो गुजरती है गुजर ही जायेगी।

(4)
जज्ब कर ले जो तजल्ली1 को वह हुनर पैदा कर,
सहल है सीने को दागों से चरागाँ2 करना।

(5)
जब मिली आंख होश खो बैठे,
कितने हाजिरजवाब हैं हम लोग।

1.तजल्ली - नूर, रौशनी, आभा (चेहरे या मुखड़े की) 2. चरागाँ - जलते हुए चरागों की लहरें, रौशन

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