Last modified on 26 फ़रवरी 2013, at 23:01

शेर तो शेर है / राजकुमार कुंभज

शेर तो शेर है

आदमख़ोर होना उसकी आदत
जहाँ भी होता है पैदा करता है भय
किंतु, वक़्त की कतरनों बाद
आता है एक वक़्त कुछ ऐसा भी
कि शेर को शेर नहीं
कठपुतली बन जाना पड़ता है

कभी पिंजरे के अंदर
तो कभी बाहर
और कभी रिंग मास्टर के कोड़े पर
नाचना भी पड़ता है

शेर तो शेर है,
नच-नचनिया होते भी
जाग जाता है एक-न-एक दिन
और दबोच ही लेता है रिंग मास्टर को

शेर तो शेर है।

रचनाकाल : 2012