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शैल शिखर / प्रेमलता त्रिपाठी

शैल शिखर से, चली उतर।
सुरसरि धारा, लहर लहर।

निर्मल करती, तन-मन को,
विपुला सुखदा, पुण्य प्रवर।

दिया शलभ तन, हेतु मिलन,
दीप रहा जल, सिहर सिहर।

मिट जाता वह, जीव विरल,
स्नेह सिक्त जो, मीत प्रखर।

उपजा कोमल, मन शतदल,
शोभित जिससे, मानस सर।

हँसकर बढ़ता, पंकिल तन,
साहस से वह, खिले निडर।

दृढ़ हो निश्चय, जहाँ सतत
जीत वहाँ है, सभी समर।

मिले कृपा गुरु, कदम-कदम,
प्रेम न जाने, द्वेष डगर।