Last modified on 9 मार्च 2014, at 19:58

शोकगीत / मारिन सोरस्क्यू

आँखों की रोशनी धुँधली पड़ चुकी है
ख़त्म हो चुकी है होंठों की मुस्कराहट
पर दिन अभी ख़त्म नहीं हुआ है
सड़कों पर हँसी-ठिठोली करते
लोगों की आवा-जाही जारी है
यह सब कुछ कितनी अच्छी तरह से तयशुदा है
कि मैं ग़ायब हो जाऊँगा इस भीड़ से
और कोई ध्यान नहीं देगा

कुछ भी नहीं होता इस दुनिया में
सिवा इसके
कि वस्तुओं की अवस्था, नहाई हुई है
निर्दयता में