ऊपर-ऊपर मुस्कानें हैं
भीतर-भीतर ग़म
जैसे शोकपत्र के ऊपर शादी का अलबम।
समय-मछेरे के हाथों का
थैला है जीवन
जिसमें जिंदा मछली जैसा
उछल रहा है मन
भीतर-भीतर कई मरण हैं
ऊपर कई जनम
जैसे शोकपत्र के ऊपर शादी का अलबम।
अपना-अपना दृष्टिकोण है
अपना-अपना मत
लेकिन मेरे मत में हम सब
बिना पते के ख़त
लिखा हुआ है जहाँ
सुघर शब्दों में दुख का क्रम
जैसे शोकपत्र के ऊपर शादी का अलबम।
-- यह कविता Dr.Bhawna Kunwar द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।