शोभा-वर्णन (राग गौरी)
गोपाल गोकुल बल्लवी प्रिय गोप गोसुत बल्लभं।
चरनारबिंदमहं भजे भजनीय सुर मुनि दुर्लभं।1।
घनश्याम काम अनेक छबि, लोकाभिराम मनोहरं।
किंजल्क बसन, किसोर मूरति भूरि गुन करूनाकरं।2।
सिर केकि पच्छ बिलोक कुंडल, अरून बनरूह लोचनं।
गुंजावसंत बिचित्र सब अँग धातु, भव भय मोचनं।3।
कच कुटिल, सुंदर तिलक भ्रू , राका मयंक समाननं।
अपहरन तुलसीदास त्रास बिहार बृंदाकाननं।4।