Last modified on 5 सितम्बर 2011, at 06:09

शोषक रे अविचल ! / मनुज देपावत

शोषक रे अविचल !

शोषक रे अविचल !
अजेय! गर्वोन्नत प्रतिपल !
लख तेरा आतंक त्रसित हो रहा धरातल !

भार-वाहिनी धरा ,
किन्तु तुमको ले लज्जित !
अरे नरक के कीट!, वासना-पंक-निमज्जित!

मृत मानवता के अधरों पर ,
मृत्यु-झाग से !
वसुंधरा पर कौन पड़े, तुम शेष नाग से !

वसुधा के वपु पर रे !
कलुष दाग तुम निश्चल !
शोषक रे ! दुर्दांत-दस्यु !, गर्वोन्नत प्रतिपल !