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शौक बोनसाई के / गरिमा सक्सेना

शहरों से लौट कहाँ
सपने फिर गाँव गये

ऊँची मीनारों को
पगडंडी याद नहीं
बूढे़ बरगद से अब
कोई संवाद नहीं

वापस ना लौट सके
आगे जो पाँव गये

शौक बोनसाई के
मन को भी छाँट रहे
तुलसी को हिस्से-हिस्से में
वो बाँट रहे

हाईब्रिड फूलों में
पूजा के भाव गये

गाँवों से दूरी ने
गाँवों को बेच दिया
बचपन की यादों की
ठाँवों को बेच दिया

खोया क्या उसका, जो
मूल्यहीन ठाँव गये