श्यामलाल गुप्त 'पार्षद' का जन्म कानपुर ज़िले के नरवल गाँव में एक वैश्य परिवार में हुआ। मिडिल पास करने के बाद वे कानपुर नगरपालिक के एक स्कूल में पढ़ाने लगे। लेकिन जल्दी ही वे भारत के स्वतन्त्रता-संग्राम में भाग लेने लगे और आज़ादी की घोषणा करते हुए इन्होंने 'सचिव' नामक एक मासिक-पत्र का सम्पादन-प्रकाशन करना आरम्भ कर दिया। बाद में पार्षद जी फ़तहपुर ज़िला कांग्रेस के अध्यक्ष बने और पुरुषोत्तमदास टंडन, जवाहरलाल नेहरू तथा आचार्य कृपलानी के साथ जेल की सज़ाएँ काटीं। पार्षद जी कुल छह बार जेल गए। एकबार जब भूमिगत हुए तो अंग्रेज़ों की सरकार ने यह घोषणा की थी कि जो पार्षद जी को पकड़वा देगा, उसे एक हज़ार रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा। उनका लिखा गीत 'झण्डा गायन' पूरे भारत में बेहद लोकप्रिय और चर्चित हुआ। सन 1924 में इस गीत को कांग्रेस के महाधिवेशन में 'झण्डा-गीत' के रूप में स्वीकार किया गया। पहली बार यह गीत 'प्रताप' साप्ताहिक में 1925 मेम प्रकाशित हुआ। श्यामलाल गुप्त 'पार्षद' के गीतों की एक ही पुस्तिका प्रकाशित हुई थी, जिसका नाम था-- "झण्डा ऊँचा रहे हमारा"।