बेघरबार रहकर भी दिया आश्रय, फ़कीरों की तरह
फ़ाक़ामस्त रहकर भी जिये आला अमीरों की तरह
अंकित हो गये तुम मानवी इतिहास में कुछ इस क़दर
आएगा तुम्हारा नाम होंठों पर नज़ीरों की तरह !
चमके तम भरे विस्तृत फ़लक पर चाँद-तारों की तरह,
रेगिस्तान में उमड़े अचानक तेज़ धारों की तरह,
पतझर-शोर, गर्द-गुबार, ठंडी और बहकी आँधियाँ
महके थे तुम्हीं, वीरान दुनिया में, बहारों की तरह !
(महाप्राण निराला की स्मृति में।)