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श्रद्धा / उर्मिला शुक्ल


श्रद्धा
प्राकृतिक है,
कृत्रिम नहीं,
पनपती है ज़मीन से
गमलें में नहीं,
फूटता है अंकुर उसका
हृदयतल से,
हलकी सी चोट से
टूटता है पल में,
बेशक,गमला कीमती होता है
बिकाऊ भी .
श्रद्धा अमूल्य है,
वह बिकती नही,
और इस्सी से वह
गमले में पनपती नहीं