Last modified on 15 अगस्त 2008, at 19:46

श्रमजित् / महेन्द्र भटनागर

घर-घर नया सबेरा लाने वाले हम
दुनिया को रंगीन बनाने वाले हम !

कलियों को मधु-गंध दिलाने वाले हम
कंठों में नव-गान बसाने वाले हम !

पैरों में झनकार भरी हमने-हमने
जीवन में रस-धार भरी हमने-हमने !

आँखों में सुन्दर स्वप्न सजाये हमने
भोर बसन्त-बहार भरी हमने-हमने !

हम जीवन जीने योग्य बनाने में रत
‘श्रम ही है पुरुषार्थ’ हमारा ऐसा मत !