श्रांत मन का एक कोना शांत मधुवन-छाँव मांगे।
सरल मन की देहरी पर
हुये पाहुन सजल सपने,
प्रीति सुंदर रूप धरती,
दोस्त-दुश्मन सभी अपने,
भ्रमित है मन, झूठ-जग में सहज पथ के गाँव माँगे।
कई मौसम, रंग देखे
घटा, सावन, धूप, छाया,
कड़ी दुपहर, कृष्ण-रातें,
दुख-घनेरे, भोग, माया।
क्लांत है जीवन-पथिक यह, राह तरुवर-छाँव मांगे।
भोर का यह आस-पंछी
सांझ होते खो न जाये,
किलकता जीवन कहीं फिर
रैन-शैया सो न जाये।
घेर लेती जब निराशा हृदय व्याकुल ठाँव माँगे।