श्री सीताराम
श्रीरामचन्द्र की स्तुतिमालिका
शिवपूजन एक रामोपासक कृत
(ईशस्तवन)
दोहा:
जयति दनुज वन घोर कृशानू। जपति विवेक सरोरुह भानू॥1॥
जयति क्षमामंदिर व्रजनन्दन। जयति दैत्यकुल मूलनिकन्दन॥2॥
जय मृगराज सुजन मनकानन। षट् विकार मृग गज पंचानन॥3॥
जय नवनीत चौर वंशीधर। जय करुणालय शंख गदाधर॥4॥
जय केशी कैटभ मधुसूदन। देव देव जय यशुदा नन्दन॥5॥
जय श्रीमर्य्यादा पुरुषोत्तम। जयति जयति सर्वज्ञ नरोत्तम॥6॥
जयति पतितपावन सुररक्षक। काल कराल असुर दल भक्षक॥7॥
जयति भूप मौलिमणि चारू। गज्जन दनुजहरण महि भारू॥8॥
जय सुरनायक यदुकुल केतू। जय जनहित रक्षक श्रुति सेतू॥9॥
जय जनमनवन केहरि शावक। जय अघ अवगुण घन वन पावक॥10॥
दोहा:
जय खरहा जय त्रिशिरहा, दूषणहा रणधीर।
रघुपुंगव रविकुलतिलक, जय जयश्री रघुवीर॥11॥
जय कालिन्दी कूल विहारी। जय त्रयताप शूल अपहारी॥12॥
जयति कच्छ मच्छ वपु धारण। गोद्विज सुर सन्तन हित कारण॥13॥
जयति जयति वाराह महीधर। जय नरसिंह देव जय प्रभुवर॥14॥
जय जय मुनिजन मानसहंसा। जय जय हंसवंश अवतंसा॥15॥
जय करुणावरुणालय यदुवर। जय सुखमासुख प्रेम पयोधर॥16॥
दोहा:
हृषीकेश माधव सुखद, राघव आनन्दकन्द।
विश्वम्भर केशव वरद, प्रभुगोविन्द मुकुन्द॥17॥
दामोदर अखिलेश विभु, अच्युत कृष्ण अखण्ड।
निष्कलंक अनवद्य मय, व्यापक सर्व ब्रह्मण्ड॥18॥
जयति जयति जय सिन्धु किशोरी। जयति विष्णु मुखचन्द्र चकोरी॥1॥
जयति जयति जय जनक किशोरी। जयति राममुख चन्द्र चकोरी॥2॥
जयति जयति वृषभानु किशोरी। जयति कृष्ण मुखचंद्र चकोरी॥3॥
जय जय भीष्मक भूप किशोरी। जयति कृष्णमुख चंद्र चकोरी॥4॥
जेहि पद लखि दशरथ सह भामिनि। रहत अनन्द मग्न दिन यामिनी॥1॥
दोहा:
जानुपाणि डुगुरत अजिर, ठुमुकत ठुमुकि परात।
मुखमाखन ओदन लसत, राउ रानि सरसात॥2॥
विहँसत किलकत मधुर मनोहर। समय सरिस गावति सखि सोहर॥3॥
दोहा:
जासु बाल लीला निरखि, रानी राउ अनन्द।
वन्दौं सोइ प्रभुपद सुखद, हरण मोह दुख द्वन्द॥4॥
चूमति भरि मुख उमँगि के, चूमि 2 हुलसात।
ललकि 2 लै गोद भरि, ठुमुकि 2 प्रभु जात॥5॥
जो पद मृदु चूमत सदा, नाद यशोदा धन्य।
वन्दौं सोइ पद पद्म रज, मो सम को जग अन्य॥6॥
जो पद यमुना ललकिके परसि पखरि सुवारि।
सादर वन्दौँ सोइ पद हिये प्रेम निरधारि॥7॥
जो पद हेम मृगा सँग धावा। जेहि जपि धु्रवहुँ अचल पद पावा॥8॥
जो पद पद्म पार्थ रथ सोहा। जेहि लखि शंकर कर मन मोहा॥9॥
जो पद शृँगवेर किय पावन। भृगु ऋषीश के मोह नशावन॥10॥
दोहा:
जो पद केवल प्रेमयुत, वारि कठौत पखार।
लै चरणोदक जन सहित, उतरेउ भवनिधि पार॥11॥
वन्दौँ सोइ मृदु पद जलजाता। भवनिधिपोत चारि फल दाता॥12॥
दोहा:
भक्त प्रतिज्ञा पालि कै, कर धरि चक्र महान।
धावा जो पद भीष्म पर, नमो सो पद सुखखान॥13॥
जेहिपद सुमिरत रैन दिन, प्रेम सहित हनुमान।
प्रणवौं सोइ पग पगुतरी, सिया लषण के प्राण॥14॥
जिन चरणन को पाइ के, शवरी गइ लपटाइ।
तिन चरणन को पादुका, नमों सदा सिरनाइ॥15॥
जा पदरज को परसि कै, तरी अहिल्या नारि।
अघ अवगुण जो दलिमलै, कीरति गुण विस्तारि॥
जेहि पद पदुम सु पाण्डरी, भरत रहैं मन लाइ।
वन्दौँ सोइ पद मंजुमृदु, भक्तन को सुखदाइ॥