डरता है मन
जब वह बनाता है कोई चेहरा
जिस पर मुस्कान बनकर ठहरना
मेरी उपलब्धियों में हो
डरता है मन
जब लटें उड़ती हैं चेहरे पर
और चाहती हैं संवारी जाएं
तुम्हारी उंगलियों से
और यह पुरस्कार हो मेरा
डरता है मन
जब मैंने गीत बुने
गुनगुनाए
चाहा कि शामिल हो
तुम्हारा स्वर भी उसमें
और यह आराधना हो मेरी
डरता है मन
जब उजली आंखों के कैनवास पर
नारंगी रंग के अध्यात्म जैसा
उगते हो तुम
और यह प्रार्थना है मेरी
सोचती हूं सौंप दूं
भय ये सारे
अंजलि में तुम्हारे
और अभय के आलिंगन में
ललाट का शृंगार बनकर
दमक उठे चुम्बन की बिंदिया !