(स्मार्त)
पढ़ब व्यर्थ यदि पढ़ा न सकलहुँ ग्रहण ग्रहे विनु दान!
यजन कोना यजमान न डेबल? षर्टकर्मा द्विज मान
(तन्त्र)
मन मोहन, उर वशी-करण, राधाक चित्त उच्चार
विद्वेषण कुरु पाण्डु कुलक बिच लोक शत्रुहुक धात
अन्त शान्ति जगतीक बीच; जन-तन्त्रक मत अनुसार
जे स्वतन्त्र छथि सर्व-तन्त्र नित जयतु ब्रजेश कुमार