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षट्-ऋतु-हायकू / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'

मस्त ही मस्त
मानव व प्रकृत्ति
बसंत ऋतु ।

भीषण गर्मी
जीव-जंतु व्याकुल
ग्रीष्म ऋतु में ।

जल ही जल
जन्हैं देखोॅ तन्नहैं
पावस ऋतु ।

सुन्नर शशि
सुशीतल चाँदनी
शरद ऋतु ।

ठंड ही ठंड
जनजीवन पस्त
शीत ऋतु में ।