Last modified on 22 जून 2017, at 18:19

सँपेरा / नवीन ठाकुर ‘संधि’

एैलोॅ एक सँपेरा,
लगैलकोॅ घूमी केॅ फेरा।
वें बजैलकै देखोॅ वीण,
अंगूल दवायकेॅ वीण पेॅ एक, दू, तीन।
कोय नै करलकै ओकरा अनचिन्ह,
जुटलै बच्चा बूढ़ोॅ कमसीन।
देलकै खोली सब्भेॅ पेटारा,

साँपोॅ-साँपोॅ में छै अन्तर,
करलकै काबू पढ़ी केॅ मंतर।
बोली-बोली केॅ बेचै छै जंतर,
कहेॅ "संधि" सुनोॅ पुरेन्दर।
येॅयेॅ काम छेकै सात दिन सबेरा,
एैलोॅ एक सँपेरा।