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संकट की राजनीति / केदारनाथ अग्रवाल

संकट की राजनीति गहरी है
आदमी से
नाव बन गया हूँ मैं
न डूबने के लिए

अंधकार अच्छा है
प्रकाश से
आदमी को खतरा है
अब निर्दीप हो गया हूँ मैं
न मरने के लिए

एक-के-बाद-एक
परेशानियों के दिन
ताँता लगाए
मेरे पास आ गए खड़े हैं
मुझे परास्त करने के लिए

रचनाकाल: १७-०९-१९६५