सर्जन सुन्दर संसार करब।
जीवन-वनमे दावानल रूपी
दानवदल संहार करब,
वसुधापर वसु ओ सुधा-
केर वर्षा हम मूसलधार करब।
विष-कुम्भ पयोमुख बनि दुर्मुख
लधने दुखपर दुख अछि सम्मुख,
विकराल अकालक भयेँ त्रस्त
मरबा लय बहुतो अछि उन्मुख
यमराजहुसँ लड़ि जायब आ
यमपुरक बन्द हम द्वार करब।
जे पर-पीड़ा नहि जानि सकय,
अनका दुखमे नहि कानि सकय
दम्भेँ मातल, अपना सुख लय
अन्यायक बल पर फानि सकय,
तकरापुर कठिन कृपाण उठा कय
निश्चय लाल कपार करब।
मुख-मलिन, हृदय थरथर कपैत,
प्रतिपल नोरेँ लोचन झँपैत,
अन्तरक आगिमे झरकि-झरकि
दाताक नाम निशि-दिन जपैत
जे काटि रहल दुखसँ जीवन
हम तकरे बेड़ा पार करब।
घट फोड़ि विषक, पट चीरि-फाड़ि
अन्यायक गृहकेँ डाहि-जारि,
प्रलयक नित नूतन दृश्य रा
हम प्रबल विपक्षीकेँ पछाड़ि
भूपर, ऊपर वक्षस्थलपर
भुज-दण्डक विकट प्रहार करब।
नन्दन वन सन शोभन सुसघन
छायाक संग अति शीत पवन
मधु-मादकतेँ मद-मत्त बनल
सिहकत अनुखन लय मृदु-कम्पन
जनताक प्राण आप्यायित कय
हम विशद विपत्तिक भार हरब।