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संकल्प / शैलेश मटियानी

गीत को
उगते हुए
सूरज-सरीखे छंद दो
शौर्य को फिर
शत्रु की
हुंकार का अनुबंध दो ।

प्राण रहते
तो न देंगे
भूमि तिल-भर देश की
फिर
भुजाओं को नए
संकल्प-रक्षाबंध दो !