शक्तिमत्व हो,
दीपाराधन हो!
मरणान्तक रावण की शर्तें
निविड़-तमिस्रा की पर्तें
टूटेंगी,
टूटेंगी!
कृत-संकल्पों के राम जगे
जन-जन के अन्तर में!
आग्नेय-अस्त्र
पुष्पक-मिग
संचालक उत्पन्न हुए
घर-घर में!
सीमाओं के प्रहरी
बने अजेय हिमालय,
मानवता की निश्चय जय!
दीपोत्सव हो,
दीपोत्सव हो!
ज्योति-प्रणव हो!
हर बार
तमस्र युगों पर
प्रोज्ज्वल विद्युत आभा
फूटेगी,
फूटेगी!
शक्तिमत्व हो,
दीपाराधन हो!
गर्विता अमा का
कण-कण बिखरेगा,
दीपान्विता धरा का
आनन निखरेगा!