ई फागुन आवै के ही आहट छेकै
कि गाछ-बिरिछ के पत्ता
हरहरावेॅ लागलोॅ छै,
हवा रोॅ तेज झोंका चलतै
कि उड़ेॅ लागतै रसहीन पत्ता
ऊपर आरो फेनू
बिछी जैतै दूर-दूर तांय
धरती पर
आखिर ई संकेते तेॅ छेकै
कि फागुन आवी चललै।
जे गाछी सेॅ छूटी गेलोॅ छै पत्र-पुष्प
वही गाछ-बिरिछ मेॅ
आबेॅ लागतै नया-नया पत्ता
नया-नया फूल।
शिशिर बुढ़ाय गेलै
तहीं सेॅ तेॅ
आबेॅ नै डरावै छै पछिया आकि उतराहा हवा।
सुरुज के चेहरा पर मुस्कान छै
शायत देखी लेलेॅ छै
दूर दक्खिन सेॅ ऐतेॅ हुवेॅ अवा केॅ
हिमप्रदेश सेॅ ऐलोॅ हवा
आबेॅ समेटी रहलोॅ छै
अपनोॅ बोरिया-बिस्तर
ई फागुन आवै के ही तेॅ आहट छेकै।