Last modified on 26 अक्टूबर 2009, at 21:12

संक्रांति / धर्मवीर भारती

सूनी सड़कों पर ये आवारा पाँव
माथे पर टूटे नक्षत्रों की छाँव

कब तक
आखिर कब तक?

चिंतित माथे पर ये अस्तव्यस्त बाल
उत्तर, पच्छिम, पूरब, दक्खिन-दीवाल

कब तक
आख़िर कब तक?

लड़ने वाली मुट्ठी जेबों में बन्द
नया दौर लाने में असफल हर छंद

कब तक?
लेकिन कब तक?