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संगीत / केशव

कहीं गा रहा कोई गीत
घंटियाँ बज रहीं
            मंदिर में

उठो
डुबोकर
खुद को
गीत और घंटियों के स्वर में
खींच लाओ
        बाहर

यह संगीत
बजता है
खेतों में
धान के बालियों में
हवा में सिहरता है

कितना धर्य है इसमें
चुप्पी को
आहिस्ता-आहिस्ता
खोलता है
एक बच्चे की जिज्ञासा से
इसे बजने दो
भीतर कोहरे को सोख लेगा
धरती को
     एक साज़ की तरह
अपनी गोद में रखकर

यह धैर्य है अगर
तो यह गीत
फूटेगा तुहम्हारे होठों से भा

हाँ
यह
धैर्य
है तुममें