संगीत अक्सर मुझे सागर की तरह अपने में समेट लेता है
और ले जाता है बहाकर
मेरे सुदूर गुमसुम पीले सितारों की ओर,
धुन्ध भरी छत या दूर तक फैले आकाश के नीचे
जहाँ मैं पालदार नौका में सवार हो जाता हूँ ।
मेरी तनी हुई छाती और हवा से फूले फेफड़े
जैसे नौका का पाल
मैं आगे बढ़ता हूँ रुद्र लहरों को नापता
यूँ रात के स्याह परदे से घिरा !
मेरे अन्दर उभरता है
लहरों पर काँपती-छितराती नौका का दर्द-ओ-जुनून
सुखद हवा, तूफ़ान, उसका विकट क्षोभ !
मैं अनन्त समुद्र के भँवर पर
जो कभी मुझे झकझोरता
कभी बिल्कुल शान्त
जैसे उभरता विशाल दर्पण में
मेरी हताशा का अक्स !
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मदन पाल सिंह