(राग वसन्त-तीन ताल)
संत महा गुन-खानी।
परिहरि सकल कामना जग की, राम-चरन रति मानी॥
पर दुख-दुखी, सुखी पर-सुख तें, दीन-बिपति निज जानी।
हरिमय जानि सकल जग सेवक उर अभिमान न आनी॥
मधुर, सदा हितकर, प्रिय साँचे वचन उचारत बानी।
बिगतकाम, मद-मोह-लोभ नहिं, सुख-दुख सम कर जानी॥
राम-नाम-पीयूष-पान-रत, मानद, परम अमानी।
पतितन को हरिलोक पठावन जग आवत अस ग्यानी॥