संन्ध्या सुन्दरी
(संन्ध्या सुन्दरी का प्रकृति चित्रण)
तुम्हें जगह दे न सकी, नहीं रात के लिये
कुपित न होना पथिक, तुम कदाचित् इसीलिये।
घर बंद कर गयी यह कह वह सुन्दरी
हँस हँसी विमोहिनी, पथिक प्राण-हरिणी।
बजा ललित करधनी, चली गयी सुन्दरी
हँसी हँसी विमोहिनी, पथिक मनोन्मादिनी
छोड़ घर देश पर, एक निराधार को
और अन्धकार को, चली गयी सुन्दरी।
( संन्ध्या सुन्दरी कविता का अंश)