गीत के मोती हृदय के सीप मेॅ छै ,
हास-करुणा तेॅ हरेक टा गीत मेॅ छै,
कविता की छै ? भावना छै, कल्पना छै |
कविता के जननी तेॅ बस संवेदना छै |
देखी केॅ सौंदर्य केॅ सौंसे जगत मेॅ,
जागै छै जे कामना, नर मेॅ, भगत मेॅ,
कामना की ? कविता के ई प्रेरणा छै |
कविता के जननी तेॅ बस संवेदना छै |
जब कभी भी आँखोॅ सेॅ ऑंसू बहै छै,
होठ कानी-कानी केॅ स्वर केॅ जनै छै ,
कानना की ? कविता के ई वेदना छै |
कविता के जननी तेॅ बस संवेदना छै |
रचनाकाल- 10 मार्च 2010