संसार का एकत्व एक सामान्य निर्बलता का बन्धन है, उस का प्रत्येक अंग अपनी निर्बलता को छिपाने के लिए मिथ्या सामथ्र्य का अभिनय करता है। इसी लिए संसार के सामान्य प्राणी अपनी शक्तियों को ही दूसरों से बँटाते हैं; शक्तियों के ही साझीदार होते हैं।
किन्तु मेरा और तुम्हारा एकत्व हमारी निर्बलताओं से नहीं, हमारे समान सामथ्र्य और शक्ति से गूँथा गया है। इस लिए आओ, हम-तुम अपनी-अपनी निर्बलताओं के साझीदार होवें, अपने अन्तर के घोरतम रहस्यमय सम्भ्रम और परिकम्पन को एक-दूसरे से कह डालें!
मुलतान जेल, 11 दिसम्बर, 1933