Last modified on 9 अगस्त 2008, at 02:29

संस्पर्श / महेन्द्र भटनागर

ओ पवित्रा !
मृदुल शीतल उँगलियों से
छू दिया तुमने
माथ मेरा —
मुश्किलें
उस क्षण
गया सब भूल !

खिल गये उर में
हज़ार-हज़ार टटके फूल !

खो गये पथ के
अनेकानेक शूल-बबूल !