राग केदार
सकल सुख के कारन
भजि मन नंद नंदन चरन।
परम पंकज अति मनोहर सकल सुख के करन॥
सनक संकर ध्यान धारत निगम आगम बरन।
सेस सारद रिषय नारद संत चिंतन सरन॥
पद-पराग प्रताप दुर्लभ रमा कौ हित करन।
परसि गंगा भई पावन तिहूं पुर धन घरन॥
चित्त चिंतन करत जग अघ हरत तारन तरन।
गए तरि लै नाम केते पतित हरि-पुर धरन॥
जासु पद रज परस गौतम नारि गति उद्धरन।
जासु महिमा प्रगति केवट धोइ पग सिर धरन॥
कृष्न पद मकरंद पावन और नहिं सरबरन।
सूर भजि चरनार बिंदनि मिटै जीवन मरन॥
सूरदास जी कहते हैं कि अरे मन! नंदपुत्र श्रीकृष्ण (जो विष्णु के अवतार हैं) के चरण कमलों का अब तो भजन कर ले अर्थात् उनका चिंतन कर। श्रीकृष्ण के चरण कैसे हैं.. इन्हीं का वर्णन इस पद में है। उनके चरण कमल के समान व सुख प्रदान करने वाले व मन को हरने वाले हैं। उनके चरणों का ध्यान सनक, सनंदन, सनातन व सनत्कुमार तथा शिव किया करते हैं। जिनकी महिमा का वर्णन वेद-पुराणों में भी किया गया है। इसके अतिरिक्त शेष, शारदा, ऋषि, नारद, संत-महात्मा भी उनके चरणों का ध्यान किया करते हैं। जिनके चरणों के पराग का प्रभाव दुर्लभ है और जो लक्ष्मी के हितकारी हैं, ऐसे विष्णु के चरण कमलों का हे मन! भजन कर। हे मन! तू प्रभु के चरणों का ध्यान कर। जिनके स्पर्श से गंगा पावन हो गई तथा जिन्होंने तीनों लोकों का घर बना दिया। अर्थात् संपन्न कर दिया। हे मन! सृष्टिगत जीवों के पापों का शमन करने वाले उन्हीं प्रभु के चरणों का तू ध्यान कर। उनके चरणों का ध्यान करके या भजन करके कितने ही पापी तर गए अर्थात् मोक्ष को प्राप्त हो गए। जिन प्रभु के चरणों की रज का स्पर्श पाकर गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या का उद्धार हो गया तथा जिनके चरणों की महिमा को केवट ने उजागर किया और उन चरणों को धोकर अपने शीश पर धारण किया, उन्हीं श्रीकृष्ण के पवित्र चरणों के मकरंद (मधुर रस) का हे मन! तू पान कर। उससे बढ़कर अन्य कुछ भी नहीं है। सूरदास कहते हैं कि हे मेरे मूढ़ मन! तू भगवान् के उन चरणों का वंदन कर जिससे तेरे जन्म-मरण का कष्ट मिट जाए।