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सचिवालय में जाते हुए / सत्यनारायण स्नेही

यहाँ मुस्तैद
जय-विजय को नहीं
किसी कृष्ण का इंतजार
वो रोकते हैं सिर्फ़
उस आदमी को
जिसकी उम्मीद और विश्वास से
बनती है लोकतान्त्रिक सरकार।
यहाँ
काठ की मेज पर
फाइलों में लिखा
हर एक शब्द
तय करता है
विधि का विधान
आदमी का वजूद
देश का भविष्य
समय का सच
जहाँ
कुर्सी के हवाले
किया होता है
नए युग का निर्माण।
यह वह जगह है
जहाँ आदमी
आदमीयत से नहीँ
हैसियत से बात करता है
कुर्सी पर बैठा होना ही
उसकी औकात बताता है।
यहाँ
पेन की स्याही में
बहता है
आदमी की धड़कन का
प्रतिबिंब
जो रंगीन काग़ज़ पर
वर्णों में तबदील होते ही
उकेरता है किसी के
जीवन का रेखाचित्र
यहाँ
गलियारों में भटका आदमी
नहीं समझ पाता
आदमी और फाइल के दरम्यान
जूझ रहे शब्दों के अर्थ
भाषा के प्रतीक
मुहावरों के संकेत
वह नहीं जान सकता
मुस्कुराते चेहरों के रहस्य
लोकतंत्र की बदलती परिभाषा
राजसत्ता के बदलते प्रतिमान
जहाँ
आदमी अधिकार
समझता है
वहीँ
उसे बख्शीश
नज़र आती है